धोबी का कुत्ता घर का न घाट का पर टिप्पणी
यह एक कहावत है ना कि मुहावरा इसका मतलब है कि जब ऐसी अवस्था आ जाए जब हम ना उधर के रहे ना इधर के. यह एक ऐसी दुविधा की स्थिति है जहां पर व्यक्ति कहीं का नहीं रह जाता.
वास्तव में प्राचीन काल में यह कहावत थोड़ी अलग थी जो कि है “धोबी का कुतका, न घर का, न घाट का”
“कुतका” एक लकड़ी से बना बल्ले जैसा यंत्र होता है जो धोबी कपड़ों को पीटने के लिए प्रयोग करता था.
आज के जमाने में जो लकड़ी कपड़े पीटने के लिए प्रयोग होता है उसको थापी कहते हैं, यह थापी कुतका से छोटा होता है. पुराने जमाने में धोबी लोग कुतका को घर पर नहीं रखते थे और वह लोग घाट पर भी नहीं रख सकते क्योंकि चोरी होने का डर है इसलिए वह कहीं बीच रास्ते में जंगल झाड़ी में छोड़ देते थे इसलिए धोबी का कुतका न घर का ना घाट का.
English
धोबी का कुत्ता घर का न घाट का वाक्य प्रयोग
वाक्य – पिताजी ने श्याम को अपनी संपत्ति से बेदखल कर दिया जिसके चलते उसकी हालत धोबी का कुत्ता घर का ना घाट जैसी हो गई है
वाक्य – अपनी बीमारी के चलते शिवम कभी इस doctor के पास तो कभी उस doctor के पास उसकी स्थिति तो धोबी का कुत्ता घर का ना घाट जैसी है
वाक्य – सिद्धू बीजेपी छोड़कर कांग्रेस गया अब AAP में जाने की सोच रहा है, आखिर धोबी का कुत्ता घर का ना घाट का
वाक्य – ज्यादा पैसे के लालच में रमेश ने नौकरी छोड़ व्यापार शुरु किया है जो कि नहीं चल पाया, अब उसकी हालत धोबी के कुत्ते जैसी है जो ना घर का है ना घाट का
धोबी का कुत्ता घर का न घाट का कहानी (story)
कई साल पहले सज्जनपुर नामक नगर में राजू नाम का एक लड़का रहता था. वह बहुत ही अच्छा क्रिकेटर था, इतना अच्छा खिलाड़ी था कि उसमें भारतीय क्रिकेट के टीम में सिलेक्शन होने की क्षमता थी पर उसे दूसरों के कामों में दखलअंदाजी करने में बड़ा मजा आता था. उसका मन किसी भी कामों में नहीं लगता था और जो दूसरे लोग करते थे वही करने की कोशिश किया करता था.
यह देखकर उसकी मां ने उसे बहुत समझाने की कोशिश की थी की अपनी यह आदत छोड़ दे नहीं तो आगे चलकर उसको यह आदत बहुत सारी परेशानियां दे सकती है पर राजू को कुछ समझ ही नहीं आता था. समय बीतता गया और उसका अपने कामों की बजाय दूसरे के कामों में दखलअंदाजी करने की आदत और ज्यादा होने लगी तभी उसने क्रिकेट की प्रैक्टिस छोड़ दी और वह अपने दूसरे दोस्तों के खेलों की प्रैक्टिस में ज्यादा ध्यान देने लगा उसका मन बहुत चंचल था और इसी मन की वजह से वह क्रिकेट के प्रैक्टिस के लिए नहीं जाता था बल्कि दूसरे फ्रेंड के साथ अलग-अलग गेम खेलने जाता था.
कुछ ही दिनों के बाद नगर में एक ऐलान किया गया कि आपके शहर में गेम्स के लिए एक सिलेक्शन होगा जिसमें जो भी चुना जाएगा उसे भारत के लिए खेलने का मौका दिया जाएगा, यह सभी सुनकर बहुत खुश हुए और वहीं से सभी अपने-अपने खेलों के लिए जी जान से मेहनत करने लगे. सभी के पास सिर्फ 2 दिन थे, राजू ने भी अपनी प्रैक्टिस शुरू कर दी. पिछले कुछ दिनों से राजू अपने गेम की प्रैक्टिस में जाने की बजाय वह दूसरे के गेम में जाने की वजह से बहुत कुछ अच्छा नहीं कर पा रहा था.
2 दिन के बाद सिलेक्शन का समय आने वाला था राजू ने बहुत कोशिश की लेकिन प्रैक्टिस की कमी की वजह से वह अपना शानदार प्रदर्शन नहीं दिखा पाया और उसका सिलेक्शन भी नहीं हुआ. वहीं दूसरी और उसके दोस्तों का कहीं ना कहीं सलेक्शन हो ही गया क्योंकि वह अपने गेम्स को सीरियस ले रहे थे वही राजू अपने गेम को सीरियस नहीं ले रहा था और अंत में राजू अपने सिर पर हाथ रख कर बैठ गया और वह उस धोबी के कुत्ते की तरह हो गया जो ना घर का था ना घाट का था.