आगे नाथ न पीछे पगहा कहावत पर टिप्पणी
यह एक कहावत है, कहावत और मुहावरे में भिन्नता होती।
जब तक हम घर गृहस्ती में नहीं आते हम बेपरवाह होते हैं, हम अपनी मर्जी के अनुरूप ही कार्य व आचरण करते हैं मगर जब हमारी शादी व बच्चे हो जाते हैं अतः हम पर जिम्मेदारी आ जाती है तो हम अपनी मर्जी नहीं चला सकते, मनचाहा आचरण नहीं रख सकते।
“पगहा” शब्द का मतलब किसी पशु के गले में बंधी रस्सी जिससे उसका मालिक उसे नियंत्रित करता है।
“आगे नाथ न पीछे पगहा” कहावत से ऐसा जान पड़ता है कि मानो किसी पशु का ना तो कोई मालिक है और ना ही उसे गले में रस्सी है अर्थात व अनियंत्रित है।
इसे किसी मानव की तुलना में समझे तो कोई ऐसा व्यक्ति जो बेपरवाह हो, जिसका ना कोई आगे और ना पीछे हो अतः पारिवारिक या सामाजिक बंधन ना हो ।
आगे नाथ न पीछे पगहा वाक्य में प्रयोग
वाक्य – श्याम कहता है मुझे बीवी-बच्चे की क्या जरूरत. न आगे नाथ न पीछे पगहा
वाक्य – रमेश अपने माता-पिता का लाडला व इकलौता बेटा है, उसे क्या न आगे नाथ न पीछे पगहा
वाक्य – पंकज जन्म से ही अनाथ है, उसके तो न आगे नाथ न पीछे पगहा
वाक्य – रामू बड़ा अमीर है, उसे काम करने की क्या जरूरत. न आगे नाथ न पीछे पगहा