बगुला भगत मुहावरे का अर्थ और वाक्य प्रयोग

Meaning
बगुला भगत मुहावरे का अर्थ (bagula bhagat hona muhavare ka arth) – ढोंगी व्यक्ति, साधु के वेश में ठग होना

बगुला भगत पर टिप्पणी

बगुला भगत यह एक पंचतंत्र की कहानी से लिया गया है.

इस कहानी में बगुला एक पक्षी होता है जो तालाब में एक टांग पर खड़ा होकर आंख मूंदकर खड़ा हो जाता है वास्तव में यह उसकी मछली पकड़ने का तरीका है वह एक तरह से देर तक आंख मूंद कर खड़े रहने की वजह से मछलियां समझती हैं कि कोई मूर्ति है या पक्षी सो गया है या तपस्वी है, जब बगुला मछलियों को आसावधान पाता है तब घात लगाता है और मछलियां को दबोच लेता है.

मुहावरे में बगुला शब्द “भगत” के साथ प्रयोग हुआ है. भगत से मतलब साधु या महात्मा से है. यहां पर भगत को एक बगुला के समान कपटी बताया जा रहा है.

‘बगुला भगत’ मुहावरे का मतलब ‘वह व्यक्ति है जो देखने में बहुत धार्मिक तथा सीधा जान पड़ता हो किंतु उसके मन में कपट हो अर्थात् जो व्यक्ति ऊपर से सरल एवं धार्मिक दिखे किंतु अंदर से ढोंगी हो, उसे ‘बगुलाभगत’ कहा जाता है।

बगुला भगत मुहावरे का वाक्य

वाक्य – हमारे गांव में एक बगुला भगत रहता था जो यदि किसी को सांप काट ले तो मंत्र से उतारने का दावा करता था

वाक्य – यूं तो भारत ऋषि-मुनियों का देश है मगर आजकल के ज्यादातर साधु और बाबा बगुला भगत होते हैं

वाक्य – आजकल के आलसी लोग तो बगुला भगत बने फिरते हैं अपना पेट पालने के लिए

वाक्य – रमेश से बच कर रहना वह तो बुरा बगुला भगत है

बगुला भगत की कहानी (Story)

इस कहानी में एक तालाब में कई जल प्राणी रहते हैं जिसमें एक पक्षी बगुला है और दूसरा महत्वपूर्ण पात्र एक केकड़ा है. बगुला ही इस कहानी का मुख्य पात्र है.

बगुला अपना जीवन निर्वाह करने के लिए मछलियों को खाता है परंतु एक दिन इस कहानी के बगुले को दुख होता है कि उसे अपने जीवन निर्वाह के लिए इतनी मेहनत करनी पड़ती है तो वह आंखों से अश्रु बहाने लगता है और तभी केकरा आता है.

केकड़ा कहता है मामा अरे आज शिकार नहीं कर रहे. केकड़ा बोला कि अब मुझसे जीव हत्या जैसा पाप नहीं होगा बहुत कर लिया शिकार अब मैं भक्ति और सेवा का जीवन जी लूंगा और किसी को नहीं खाऊंगा.

केकड़ा बोला तो खाओगे नहीं तो मर जाओगे, इसके उत्तर में बगुला बोला कि हमें वैसे भी मरना ही है क्योंकि यह तालाब सूखने वाला है और यह बात उसे त्रिकालदर्शी महात्मा ने बताई है.

केकड़ा जाकर सब अन्य जल प्राणियों को बगुले का हृदय परिवर्तन के बारे में तथा उसके भक्ति और सेवा के मार्ग में प्रवेश करना और तालाब के सूखने के बारे में बताता है.

फिर जल प्राणी सब बगुले से भेंट करने आते हैं और केकड़ा कहता है कि बगुला भगत अब तुम ही बताओ कि हम क्या करें. तब बगुला कहता है कि तुम चिंता मत करो पास में ही एक दूसरा तालाब है जो कभी नहीं सूखता मैं सबको यहां से बारी-बारी वहां ले जाऊंगा.

यह बात सुनकर सब जल परानी बगुले की जय कार करते हैं.

बारी बारी से बगुला 1-1 जल प्राणी को अपने पीठ पर बिठाकर ले जाता है और रास्ते में एक चट्टान पर गिरा कर पटक देता है और उसे खा जाता है. ऐसा कुछ दिन चलने के बाद बगुला थोड़ा सेहतमंद हो जाता है, यह देख जल प्राणी कहते हैं अरे वाह भक्ति और सेवा का फल बगुला मोटा ताजा हो गया.

काफी दिन बीत जाने के बाद जब केकड़ा बगुले के पास आता है तब केकड़ा कहता है कि अरे मामा मुझे कब ले चलोगे उस कभी ना सूखने वाले तालाब में.

बगुला हंसकर कहता है बिल्कुल आज ही चलो, केकड़ा बगुला के पीठ पर बैठ जाता है बगुला उड़ता हुआ आसमान से जब चट्टान के पास पहुंचा तब केकड़ा ने यह देख की हड्डियों का काफी ढेर पड़ा हुआ है उसका माथा ठनका और बगुले मामा से पूछता है कि वह दूसरा कभी ना सूखने वाला तालाब कहां है.

बगुला कहता है कि मैंने सबको मूर्ख बनाया है भगत होने का ढोंग किया है इससे मुझे मेहनत भी नहीं करनी पड़ती और खाना भी मिलता है और आज तेरी बारी है.