छाती पर साँप लोटना पर टिप्पणी
मानव के सदगुण है दया, संतोष और शील वहीं दूसरी और अवगुण है क्रोध, लोभ वासना। ईर्ष्या काम से उत्पन्न होता है।
जब हम देखते हैं हमारे आस पास कोई व्यक्ति हमसे किसी क्षेत्र में आगे निकल गया है तो हम सोचते हैं यह ज्यादा पैसा कमाता है और मैं कम इससे हमें दुख होता है और इसे ही ईर्ष्या कहते हैं।
और इसी ईर्ष्या कारण जब जलन होती है तब छाती पर सांप लोटना मुहावरे का प्रयोग होता है।
छाती पर साँप लोटना वाक्य प्रयोग (sentence)
वाक्य – भारत की तरक्की से हमेशा पाकिस्तान के छाती पर सांप लोटता है।
वाक्य – भाई का अवसर बन जाने से राकेश के छाती पर सांप लोटने लगा।
वाक्य – पड़ोसी ने अपने घर को चार मंजिला कर ली, यह देख मेरी तो छाती पर सांप लोट गया।
वाक्य – महेश ने नौकरी छोड़कर व्यापार शुरु किया और तब से उसकी खूब चांदी हो गई है। यह देख रिश्तेदारों के तो छाती पर सांप लोट गया।