कहां राजा भोज कहां गंगू तेली अर्थ, वाक्य और कहानी (story)

Meaning
कहां राजा भोज कहां गंगू तेली का अर्थ (kaha raja bhoj kaha gangu teli) – दो व्यक्तियों की महत्ता में अधिक अंतर होना

कहां राजा भोज कहां गंगू तेली कहावत का अर्थ समझे

यह एक प्रसिद्ध कहावत है।कहावत और मुहावरे में अंतर होता है।

इस कहावत में दो व्यक्तियों के अंतर की बात हो रही है. पहला व्यक्ति राजा भोज है जो कि एक राजा है दूसरा व्यक्ति गंगू तेली है जो कि कोई छोटा व्यक्ति है. हम मान लेते हैं कि गंगू तेली कोई नौकर है

हम जानते हैं कि एक राजा और नौकर में कोई बराबरी नहीं बल्कि जमीन आसमान का अंतर है इसलिए कहां राजा भोज कहां गंगू तेली

इस कहावत का वहां प्रयोग होता है जहां किसी एक व्यक्ति की महत्ता किसी दूसरे व्यक्ति से काफी ज्यादा हो

कहावत के पीछे प्राचीन कहानियां भी होती है इसलिए आप इसकी कहानी जरूर पढ़ें

कहां राजा भोज कहां गंगू तेली का वाक्य प्रयोग

वाक्य – तुम अपनी तुलना महान गजल गायक जगजीत सिंह से कर रहे हो? यह तो वही बात हो गई कि कहां राजा भोज कहां गंगू तेली।

वाक्य – वह एक जमींदार का बेटा है और तुम एक गरीब किसान के। तुम दोनों में क्या मेल? कहां राजा भोज कहां गंगू तेली।

वाक्य – जो करोड़पति ने अपने बेटे का रिश्ता एक सामान् अध्यापक के घर किया।तब सामने एक ही बात कही “कहां राजा भोज कहां गंगू तेली”।

वाक्य – यदि राजा और सेवक दोनों एक ही थाली में खाना खाए तब लोग आश्चर्य से कहेंगे “कहां राजा भोज कहां गंगू तेली”।

कहां राजा भोज कहां गंगू तेली कहावत के पीछे की कहानी (story)

इस कहावत के पीछे कई कहानियां है मगर हम यहां पर एक प्रचलित कहानी का वर्णन करेंगे

प्राचीन काल में भोजराज नाम के राजा थे. 11 वीं सदी में वह मध्य प्रदेश में स्थित मालवा शहर के राजा थे

वह बड़े निपुण योद्धा थे. साथ ही साथ उन्हें आयुर्वेद, वास्तु, ज्योतिष का भी बहुत ज्ञान था. वह बड़े ज्ञानी अथवा उदार पुरुष थे उन्होंने अपने काल में कई मंदिर बनवाए

दूसरी ओर दक्षिण भारत के दो राजा थे – गांगेय और तैलंग. इन दोनों की सेना बड़ी विशाल थी और दूसरी राजा भोज की सेना छोटी.  इन्होंने सोचा क्यों ना राजा भोज पर आक्रमण कर उनके राज्य में कब्जा जमाया जाए

दोनों ने अपनी विशाल सेना के साथ आक्रमण किया मगर राजा भोज के पराक्रम के सामने दोनों को मुंह की खानी पड़ी और दोनों राजा हार कर भाग खड़े हुए 

तभी से यह कहावत प्रचलित हो गई कि “कहां राजा भोज कहां गांगेय तैलंग”. बाद में समय की धारा के साथ “गांगेय तैलंग” “गंगू तेली” हो गए और मुहावरा बन गया “कहां राजा भोज कहां गंगू तेली”